सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

योगी सरकार ,मशरूम की खेती के जरिए किसानों को बना रही आत्मनिर्भर

 




लखनऊ 27 जून (वार्ता) किसानों की आय बढ़ाने और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में मशरूम की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक विशेष अभियान शुरू किया है।

यह पहल किसानों की समृद्धि और आत्मनिर्भरता के लिए नए रास्ते खोलने के सरकार के चल रहे प्रयासों का हिस्सा है। इस अभियान के तहत राजधानी लखनऊ समेत आठ जिलों में मशरूम की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। किसानों को इस लाभदायक व्यवसाय से जोड़कर सरकार न सिर्फ रोजगार पैदा कर रही है बल्कि उन्हें वैज्ञानिक और तकनीकी खेती के तरीकों की ओर भी ले जा रही है।
खास बात यह है कि मशरूम की खेती अब सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं रही- महिलाएं भी इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं और सफल भी हो रही हैं। मथुरा की गीता देवी और हरदोई की सोनाली सब्बरवाल ऐसी ही दो प्रेरक मिसाल हैं।
अधिकारियों ने शुक्रवार को यहां दावा किया कि गीता देवी ने ढाई साल पहले मशरूम की खेती शुरू की थी। योगी सरकार के सहयोग से उन्होंने 1.61 करोड़ रुपये की परियोजना शुरू की, जिसके लिए उन्हें 70 लाख रुपये का ऋण मिला। आज उनकी मशरूम की उपज मथुरा ही नहीं बल्कि आगरा और दिल्ली जैसे शहरों में भी सप्लाई की जाती है। उनकी सफलता की वजह से उन्हें सालाना 20 से 25 लाख रुपये की आमदनी हो रही है, जिससे वे स्थानीय निवासियों और दूसरे जिलों की महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन गई हैं।
इसी तरह हरदोई की सोनाली सभरवाल ने मशरूम की खेती को मिशन के तौर पर अपनाया है और ग्रामीण महिलाओं को इस उच्च संभावना वाले कृषि व्यवसाय से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित और प्रशिक्षित किया है। लखनऊ, मथुरा, सहारनपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, हरदोई, रायबरेली और भदोही समेत इन आठ जिलों में किसान मशरूम की खेती से लाखों कमा रहे हैं।
तकनीकी और वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार आत्मनिर्भर कृषक समन्वय विकास योजना और एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) जैसी योजनाओं के जरिए किसानों को संसाधन और सहायता मुहैया करा रही है। ये योजनाएं किसानों को पारंपरिक खेती से आगे बढ़कर उच्च लाभ वाले कृषि व्यवसाय अपनाने में मदद कर रही हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

खुशहाली की राहें

दिलबाग सिंह विर्क प्रेम ही संसार की नींव है। हमारे मोहल्ले में एक शिक्षक महोदय ने कुत्ते के छोटे-छोटे बच्चों की सेवा -सुश्रुसा की। उन्हें टीके लगवाए। वर्क फ्रॉम होम करते हुए बिटिया ने कुछ समय उनकी सेवा-सुश्रुषा के लिए निकाला। मैंने उस डॉग लवर से बातचीत भी की, उसने बताया कि वह उनकी सेवा इसलिए करता है कि उसे आत्म संतुष्टि मिली। मुझे अच्छी तरह से याद है कोविड-19 के पहले दौर में भयभीत लोग अपने-अपने घर के भीतर थे परंतु सरकारी कर्मचारी पूरी मुस्तैदी से फील्ड में घूम रहे थे। मेरे दो सहकर्मी अक्सर अपनी कार में चारा खरीदते थे तथा सड़क के किनारे खड़ी भूखी गायों को खिलाया करते थे। तभी पता चला कि कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुबह जब लोक सेवा के लिए जाती थीं तो साथ में अपने सामर्थ्य अनुसार कुछ बिस्कुट और कुछ रोटी या खाद्य पदार्थ लेकर जाती थीं। यकीन मानिए उन दिनों मेरी दोस्ती गिलहरी से हो चुकी थी। सुबह 5 बजे नींद खुलती थी और मैं छोटी सी कटोरी में पानी तथा कुछ दाने वगैरह डाल दिया करता था। गिलहरियां आतीं, दाने खातीं और चली जातीं। लेकिन एक दिन बहुत देर से उठने के कारण गिलहरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उ...

सपा अध्यक्ष को लगता है कि मुसलमान उनकी जेब में हैं: मायावती

  सहारनपुर, 05 फरवरी (वार्ता) बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में पार्टी की ओर से सभी समाज के लोगों को टिकट दिये जाने का दावा करते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) पर मुसलमानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। सुश्री मायावती ने शनिवार को सहारनपुर में सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए मुस्लिम समाज से पूछा, “उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार हटने पर भाजपा के सत्ता में आने के बाद मुसलमानों ने सपा का सबसे ज्यादा साथ दिया, यह सबको मालूम है, लेकिन उसके बदले में मुस्लिम समाज को सपा से क्या मिला? मुस्लिम समाज के लोगों से मैं यह पूछना चाहती हूं कि सपा ने उत्तर प्रदेश में कितने टिकट मुस्लिम समाज के लोगों को दिये।” बसपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने यहां पहुंची पार्टी सुप्रीमाे ने सपा पर मुजफ्फरनगर कांड की आड़ में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का भाईचारा खत्म करने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह घटना पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए दंगे का सबसे बड़ा उदाहरण है। सुश्री मायावती ने कहा कि मुजफ्फरनगर कांड में जाटवों के साथ-साथ मुस्लिम समुदाय को भी जान माल का बहु...

हार-जीत से बड़ा है सक्षम बनना

अमिताभ स. 'सफलता और असफलता में से किसी एक का पलड़ा भारी नहीं है, क्योंकि सीखते हम दोनों से हैं।Ó कहना है, इसरो के पूर्व प्रमुख व जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. के. सिवन का। सच है कि जीत या सफलता एक मन:स्थिति है। लेकिन कुछ हासिल करना या किसी को परास्त करना, वास्तव में जीत कहां है? आप जैसे हैं, वैसे ही खुश हैं, यह सफलता के असल मायने हैं। बस खेलते रहना जीत से कम बड़ी बात नहीं है। जीतने या हारने से ज्यादा अहमियत सक्षम बनने की है। सयाने बताते हैं कि जिंदगी जीने की जो सीख खेल-खेल में मिलती है, वह किसी से नहीं मिलती। सुबह की सैर और जिम में कसरत सेहत जरूर दुरुस्त रखते हैं, लेकिन खेलों जैसा चौतरफा व्यक्तित्व निखार नहीं ला पाते। हारना सिखाना ही खेलों की बड़ी खूबी है। जबकि कोई हारना नहीं चाहता, न ही किसी को हारना आता है। स्कूली और गली-मोहल्लों के खेलों में तो बचपन ही गुजरता है कि हारते जाओ, फिर भी खेलते जाओ। कोई कितना हारे, खेलने के मौके कम नहीं होते। खेलों की भांति जिंदगी में भी तमाम चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है- कुछ जीतते हैं, कुछ हारते हैं। जाने-माने उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी बताते हैं, 'क...