बदलते भू-राजनैतिक माहौल में ईवी के साथ दूसरे विकल्पों पर देना होगा ध्यान : संजीव चोपड़ा
नयी दिल्ली, 11 अगस्त (वार्ता) केंद्र में खाद्य एवं जनवितरण प्रणाली विभाग के सचिव संजीव चोपड़ा ने सोमवार को कहा कि बदलती भू-राजनैतिक परिस्थितियों में हमें इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के साथ हाइब्रिड और फ्लेक्सी फ्यूल वाहनों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
वाहन निर्माता कंपनियों के संगठन सियाम द्वारा यहाँ जैव-ईंधन दिवस पर यहाँ आयोजित एक कार्यक्रम में श्री चोपड़ा ने कहा कि मौजूदा भू-राजनैतिक परिस्थितियों में ईवी के लिए जरूरी आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। निकेल, कोबाल्ट, लीथियम, सेमीकंडक्टर चिप - ये किसी भी ईवी के मूल आधार हैं। इनकी आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के बाद हमें यह सोचना होगा कि हमारे पास क्या विकल्प हैं।उन्होंने कहा कि सरकार ने ईवी को अब तक काफी प्रोत्साहन दिया है। फेम, उत्पादन आधारित प्रोत्सान और पीएम ई-ड्राइव जैसी योजनायें शुरू की गयी हैं।
उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में हुई प्रगति के बाद सरकार के समक्ष विकल्प स्पष्ट हैं। उन्होंने उम्मीद जतायी कि सरकार उद्योग, ग्राहकों और पर्यावरण समेत सभी पक्षों को ध्यान में रखकर कोई फैसला करेगी।
सचिव ने कहा कि जैव ईंधन के फीड स्टॉक के मामले में कोई समस्या नहीं है। इथेनॉल उत्पादन का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा पहले गन्ना से बन रहा थे। लेकिन हम पाँच-छह साल पहले की तुलना में काफी मजबूत स्थिति में हैं। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में अनाजों से भी इथेनॉल तैयार करने की अनुमति दी गयी है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने इस साल बचे हुये चावल के स्टॉक में से 52 लाख टन इथेनॉल उत्पादन के लिए दिये थे।
उन्होंने बताया कि अभी एफसीआई जो चावल खरीदती है उसमें 25 प्रतिशत टुकड़ा चावल की अनुमति दी जाती है। इस साल अक्तूबर से मात्र 10 प्रतिशत टुकड़ा चावल की अनुमति होगी। अतिरिक्त 15 प्रतिशत टुकड़ा चावल की मिल नीलामी कर सकेंगे जो इथेनॉल निर्माताओं के लिए भी उपलब्ध होगा।
भारत में ब्राजील के राजदूत केनेथ फेलिक्स ने कहा कि फीड स्टॉक की प्रचुर उपलब्धता के अलावा ब्राजील में इथेनॉल ब्लेंडिंग की सफल कहानी के पीछे सबसे बड़ा कारक नीति और करों में स्थिरता है। किसानों को दिये जाने प्रोत्साहन को लगातार बरकरार रखा गया है, नीति और अनुसंधान में तालमेल बिठाया गया है।
इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के प्रबंध निदेशक कमल किशोर चटीपाल ने कहा कि बायोगैस के लिए फीड स्टॉक की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसका एक जगह संकलन और फिर उसमें से बायोगैस के उपयुक्त अपशिष्ट को अलग करना चुनौती है। देश में 50 करोड़ टन कृषि अपशिष्ट हर साल उत्पन्न होता है जिससे छह करोड़ टन बायोगैस के उत्पादन की संभावना है। अभी सरकार ने 1.5 करोड़ टन का लक्ष्य रखा है। दूसरी समस्या वित्त की उपलब्धता की है क्योंकि जब तक उत्पाद के उठाव के लिए समझौता नहीं होता, संयंत्र के लिए ऋण देने से बैंक कतराते हैं। बायोगैस को शुद्ध बनाने में प्रौद्योगिकी से संबंधित चुनौतियाँ हैं।
उन्होंने कहा कि अभी जो संयंत्र उपलब्ध हैं उनकी क्षमता 15 से 20 टन बायोगैस उत्पादन की है जबकि हम 100 टन के संयंत्र विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही गैस की आपूर्ति के लिए बुनियादी ढाँचा विकसित करने की भी जरूरत है।
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