श्रीगुरु तेग बहादुर ने धर्म के लिए शीश कटवाया मगर शीश नहीं झुकाया : चम्पत राय
अयोध्या 29 नवम्बर (वार्ता) श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब जी महाराज के 350वें शहीदी शताब्दी के अवसर पर साकेत निलयम में श्रीगुरु तेगबहादर साहिब सेवा समिति, अयोध्या द्वारा श्रीगुरुग्रन्थसाहिब की स्थापना व शबद कीर्तन का आयोजन सम्पन्न हुआ।
बलिदान दिवस के अवसर पर आयोजित सत्संग शब्द कीर्तन कार्यक्रम में आलमबाग लखनऊ गुरुद्वारा के अध्यक्ष निर्मल सिंह ने सभी को उद्बोधन दिया I
इस अवसर पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट महामंत्री चम्पत राय ने कहा कि श्रीगुरु तेग बहादुर साहिब जी महाराज एकमात्र ऐसे संत-योद्धा हैं जिन्होंने अपने ही नहीं अपितु दूसरों के धर्म की रक्षा हेतु अपना शीश दे दिया। सन् 1675 का वह समय था जब मुगल बादशाह औरंगजेब ने पूरे हिन्दुस्तान में जबरन इस्लाम कबूल कराने का भयानक अभियान चला रखा था। कश्मीरी पण्डित सबसे ज्यादा संकट में थे। मंदिर तोड़े जा रहे थे, जजिया कर थोपा जा रहा था। विरोध करने वालों को मृत्युदण्ड दे दिया जाता था। अंत में कश्मीर के 500 ब्राह्मणों का एक दल अपने धर्म की रक्षा की गुहार लेकर आनंदपुर साहिब पहुंचा। उस समय गुरु जी अपने पुत्र,बाल गोबिंद राय जो बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी कहलाए उनके साथ थे। जब गोबिंद राय ने पूछा कि इनकी रक्षा कौन कर सकता है, तो गुरु जी ने शांत स्वर में कहा – “केवल कोई महान संत ही ऐसा कर सकता है।” बालक ने तुरंत कहा, “पिता जी, आपसे बड़ा संत और कौन है?” बस यही एक वाक्य था। गुरु तेग बहादुर जी ने तुरंत फैसला ले लिया। वे अपने पंच प्यारे सिखों – भाई मतिदास, भाई सतिदास, भाई दयाला, भाई गुरबख्श और भाई उद्धा के साथ दिल्ली की ओर चल पड़े। उन्हें पहले आगरा फिर दिल्ली लाया गया और चांदनी चौक की कोतवाली में कैद कर लिया गया।
उन्होंने बताया कि औरंगजेब ने तीन विकल्प दिए- इस्लाम कबूल करो चमत्कार दिखाओ या मृत्यु स्वीकार करो। गुरु जी ने मुस्कुराते हुए कहा, “न मैं चमत्कार दिखाऊँगा, न धर्म बदलूंगा। मैं मृत्यु चुनता हूँ।” इसके बाद जो क्रूरता हुई, वह मानवता को शर्मसार करने वाली थी। भाई मतिदास को जीते-जी आरे से चीर दिया गया,भाई दयाला को उबलते तेल के कड़ाह में डाल दिया गया,भाई सतिदास को रुई लपेट कर जिंदा जला दिया गया। इन सबको देखकर भी गुरु जी का चेहरा शांत रहा। 24 नवम्बर 1675 को चांदनी चौक में जहाँ आज गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है वहीं गुरु तेग बहादुर जी को शहीद कर दिया गया। उनका सिर काटकर अलग कर दिया गया लेकिन यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया। जबरन इस्लाम कबूल कराने का भयानक अभियान चलाया जा रहा था वो अभियान रुक गया। लाखों हिन्दुओं का धर्मांन्तरण होने से बच गया। यही कारण है कि गुरु जी को “हिन्द दी चादर” कहा जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उनके बलिदान और बहादुरी के लिए लिखा: “तिलक जंजू राखा प्रभ ताका, कीनो बड़ो कलू महि साका।” आज जब देश फिर से अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की बात कर रहा है, गुरु तेग बहादुर जी का संदेश गूंज रहा है – “सिर दिया, पर सिर नहीं झुकाया।”
इस कार्यक्रम में बावन मंदिर पीठाधीश्वर महंत वैदेही बल्लभ शरण, उदासीन ऋषि आश्रम महंत डा भरत दास, श्रीराम आश्रम महंत जय राम दास, सीता कांत सदन महंत रामानुजाचार्य महाराज,श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट सदस्य डा. अनिल मिश्र, निर्माण प्रभारी गोपाल राव, राम कचहरी मंदिर के महंत शशि कांत दास, तुलसी दास छावनी महा मण्डलेश्वर महंत जनार्दन दास, पंडित राकेश तिवारी, महंत राम मिलन शरण, महा मण्डलेश्वर महंत गणेश दास, महंत महेश दास, महंत शत्रुघ्न दास, संघ प्रांत सम्पर्क प्रमुख गंगा सिंह, राम जानकी धोबी मंदिर के महन्त छतर दास महाराज उपस्थित रहे।

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